आजमगढ़ : प्रदेश की जलवायु फॉल आर्मी वर्म के अनुकूल, कीट की पहचान कृषकों को होना अत्यन्त आवश्यक – लोकेन्द्र सिंह

Azamgarh I आजमगढ़ Uttar Pradesh। उत्तर प्रदेश पूर्वांचल न्यूज़

एबी न्यूज़ संवाददाता

आजमगढ़ 08 अप्रैल– लोकेन्द्र सिंह, उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) आजमगढ़ मण्डल,आजमगढ ने अवगत कराया है कि प्रदेश की जलवायु फॉल आर्मी वर्म के अनुकूल है। विगत वर्षो में आगरा, मथुरा, मैनपुरी, अलीगढ,ऐटा,कानपुर एवं गोरखपुर में इसका प्रकोप देखा गया। यह एक बहुभोजी कीट है जिसके कारण मक्का के साथ-साथ अन्य फसलों जैसे- ज्वार,बाजरा,धान,गेहॅू तथा गन्ना आदि फसलों को भी हानि पहुॅचा सकता है। अतः इस कीट की पहचान एवं प्रबन्धन की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यन्त आवश्यक है।  
इस कीट की मादा ज्यादातर पत्तीयों की निचली सतह पर अण्डे देती है, कभी-कभी पत्तीयों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे दे देती है। इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में अण्डे देकर सफेंद झाग से ढक देती है। अण्डे हलके पीले (की्रम कलर) या भूरे रंग के होते हैं।
सर्वप्रथम फॉल आर्मी वर्म तथा सामान्य सैनिक कीट में अन्तर जानना आवश्यक है। फॉल आर्मी वर्म का लार्वा भूरा,धूसर रंग का होता है तथा इसके पार्श्व में तीन पतली सफेद धारियॉ और सिर पर उलटा अंग्रेजी अक्षर का वाई Y दिखता है। शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार गहरे बिन्दु दिखाई देते हैं तथा अन्य खण्डों पर चार छोटे-छोटे बिन्दु समलम्ब आकार में व्यवस्थित होते हैं।
इस कीट की प्रथम अवस्था सुंडी (लार्वा) सर्वाधिक हानिकारक होती है। सामान्यतः यह कीट बहुभोजी होता है लगभग 80 फसलों पर अपना जीवन चक्र पूरा कर सकता है, जिसमें मक्का,बाजरा,ज्वार एवं गन्ना प्रमुख हैं, परन्तु मक्का इस कीट की रूचिकर फसल है। चारा, शाक, सूर्यमुखी, बन्दगोभी, फूलगोभी आदि फसलों को भी क्षति पहुॅचा सकता है। यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं में हानि पहुॅचाता है। यह कीट मक्का की पत्तियों के साथ-साथ बाली को भी प्रभावित करता है। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधों के गोभ के अन्दर घुस कर अपना भोजना प्राप्त करता है। इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल की बढवार अवस्था में पत्तियों में छिद्र एवं पत्तियों के बाहरी किनारों पर इस कीट द्वारा उत्सर्जित पदार्थो से की जा सकती है। उत्सर्जित पदार्थ महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है।
इसके उपचार हेतु फसल की नियमित निगरानी एवं सर्वेक्षण करें। प्रकोप की दशा में जनपद के विभागीय अधिकारियों को तत्काल सूचित करें। प्रकोप दिखाई देने पर सहभागीय फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली के व्हाट्सएप नम्बरों क्रमशः 9452247111 एवं 9452257111 पर फोटो खीचकर भेजें जिसका समाधान 48 घन्टे के अन्दर किया जायेगा। अण्ड परजीवी जैसे ट्राइकोग्रामा प्रेटियोसम अथवा टेलीनोमस रेमस के 50000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से इनकी संख्या में कमी की जा सकती है। यांत्रिक विधि के तौर पर सांयकाल (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच एवं 8 से 10 की संख्या में बर्ड पर्चर प्रति एकड़ लगाना चाहिए। 35-40 फेरोमोन ट्रेप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाकर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। फॉल आर्मी वर्म के अण्डे इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की गोभ में रेत एवं बुझा चूना को 9ः1 के अनुपात में मिलाकर बुरकाव करने से इस कीट के लार्वा का प्रकोप कम हो जाता है। 5 प्रतिशत पौध तथा 10 प्रतिशत गोभ क्षति की अवस्था में कीट नियंत्रण हेतु एन0पी0वी0 250 एल0ई0 अथवा मेटाराइजियम एनिप्सोली 5 ग्राम प्रति लीटर पानी (2.50 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर) अथवा बैसिलस थुरिनजैनसिस (बी0टी0) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी (1 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर) अथवा ब्यूवैरिया-बैसियाना 2.50 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना लाभकारी होता है। इस अवस्था में नीम ऑयल 5 मि0ली0 प्रति लीटर पानी (2.50 लीटर प्रति हेक्टेयर) में घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीटों की संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। 10 से 20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रासायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है। इस हेतु क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस0सी0 0.4 मिली प्रति लीटर पानी (200 मिली0 प्रति हेक्टेयर) अथवा इमामेक्टिन बेनजोइट 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी (200 ग्राम प्रति हेक्टेयर) अथवा थायामेथाक्सॉम 2.6 प्रतिशत+लैंम्ब्डासाइहैलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत 0.5 मिली प्रति लीटर पानी (250 मिली प्रति हेक्टेयर) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

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“AB News Live” Chief Editor Abdul Kaidir “Baaghi”, Bureau Office –District Cooperative Federation Building, backside Collectorate Police Station, Civil Line, Azamgarh, Uttar Pradesh, India, Pin Number – 276001 E-mail Address – abnewslko@gmail.com, Mobile Number – +91 9415370695

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